ज्ञानेंद्र सिंह, नई दिल्ली
रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता की पंक्ति "सिंहासन खाली करो जनता आती है" नारा लगाकर दिल्ली के इसी रामलीला मैदान से जनता के बीच उतरे थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण। नाम मिला, जेपी आंदोलन। रविवार को फिर एक नारा इसी मैदान पर दिया गया है "तानाशाही हटाओ लोकतंत्र बचाओ"। जेपी आंदोलन में समाजवादी लोग थे।
रविवार की उक्त रैली में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी लोकनायक की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ललकारा। कहा कि दिल्ली की गद्दी में बैठने वाले हुक्मरान ज्यादा दिन तक यहां नहीं रुकेंगे। उन्होंने उन्होंने बीजेपी से सवाल किया है कि यदि आप 400 पर का नारा दे रहे हैं तो फिर आम आदमी पार्टी के नेताओं से क्यों डरते हो। कुल मिलाकर रामलीला मैदान की रैली ने आज बहुत सारे संस्मरण ताजा कर दिए।
कई ऐतिहासिक राजनीतिक आंदोलनो के गवाह दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को हुई विपक्ष की रैली से क्या फिर कोई देशव्यापी संदेश जाएगा। इस सवाल ने देश भर के प्रमुख राजनेताओं को झकझोर दिया है। खासतौर से 400 पार या 180 से कम और मैच फिक्सिंग के आरोपी का जवाब देने के लिए सत्ता पक्ष को फिर से कोई रणनीति अपनानी पड़ेगी।
मुगलकाल से आज तक रामलीला मैदान हमेशा देशव्यापी चर्चा में रहा है। कई बड़े आंदोलन की नीव यहां रखी गई है। ब्रिटिश शासको से लेकर जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अन्ना हजारे, किसान आंदोलन का गवाह भी बना। अजमेरी गेट और तुर्कमान गेट के बीच 10 एकड़ जमीन में फैला हुआ यह मैदान कभी
* जेपी ने "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" नारा इसी मैदान में दिया था
तालाब होता था अब उसमें एक लाख से अधिक लोगों की क्षमता है। बहादुर शाह जफर ने मैदान में तब्दील करवा करवाया था। इसी मैदान पर 1883 में अंग्रेजों ने ब्रिटिश कैंप लगवाए थे। बाद में यहां रामलीला का मंचन शुरू हुआ। रामलीला मैदान में रैली, सभाओं, प्रदर्शन और आंदोलन के लिए तब पसंद किया जाने जब 1945 में मोहम्मद अली जिन्ना को यहां एक जनसमूह ने मौलाना की उपाधि दी थी।
आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल एवं अन्य बड़े नेताओं ने यहां पर भारत को आजाद करने की भी अलख जलाई थी। 1952 में रामलीला मैदान में जम्मू कश्मीर मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे क्रांतिकारियों ने सत्याग्रह भी किया था। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1956 से 1957 के बीच इसी मैदान में देशवासियों को संबोधित करने के लिए बड़ी जनसभाओं का आयोजन किया था।
1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यहां पर भारत- पाक जंग की जीत की जनसभा को संबोधित किया था। 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश बनने का जश्न भी इसी मैदान में मनाया था। 1975 में आपातकाल के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसी मैदान में कांग्रेस के खिलाफ ऐतिहासिक रैली आयोजित की थी।
बताते हैं कि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तियां सिंहासन खाली करो कि जनता आती है नारा भी इसी रामलीला मैदान से गूंज था। इतना ही नहीं, अरविंद केजरीवाल को जब दिल्ली में कोई जानता नहीं था, तब अपनी पहली सभा इसी मैदान में की थी।
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